भगवान कृष्ण के जन्मदिन के अवसर पर जन्माष्टमी का त्यौहार बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। इस उत्सव को दुनिया भर में लोग मनाते हैं और हर कोई इसे अनूठे तरीके से सेलीब्रेट करता है। इस पावन अवसर पर एण्डटीवी के कलाकारों ने अपने शहरों में होने वाले श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के बारे में बताया। इन कलाकारों में शामिल हैं – ‘दूसरी माँ‘ के आयुध भानुशाली (कृष्णा), नेहा जोशी (यशोदा), आरजे मोहित (मनोज); ‘हप्पू की उलटन पलटन‘ की गीतांजली मिश्रा (राजेश), चारूल मलिक (रूसा) और ‘भाबीजी घर पर हैं‘ की शुभांगी अत्रे (अंगूरी भाबी), सानंद वर्मा (अनोखे लाल सक्सेना)। का किरदार निभा रहीं नेहा जोशी उर्फ ‘दूसरी माँ’ की यशोदा ने कहा, ‘‘महाराष्ट्र में जन्माष्टमी का त्यौहार काफी जीवंत तरीके से मनाया जाता है। यहाँ पर हर तरफ लोग मानव पिरामिड बनाते हुए दिखेंगे, जो कि दही हांडी तोड़ने के जोश में होते हैं। दही हांडी में दही, दूध, फल और मिठाइयाँ होती हैं। महाराष्ट्र में जन्माष्टमी का पूरा माहौल धमाकेदार और अलौकिक होता है। नासिक में पली-बड़ी होने के कारण मेरा सौभाग्य रहा कि मैंने इस अनुभव को करीब से देखा। कोने-कोने में लोग दही हांडी इवेंट के लिये इकट्ठे होते थे और जब हम छोटे थे, तब एक पल का नजारा देखने से भी नहीं चूकना चाहते थे। हम लगातार घूमते रहते थे, हर पल को सँजोते थे और यह देखने के लिये उत्सुक रहते थे कि आखिरकार हांडी को कौन तोड़ेगा। मंदिर की सजावट और भक्ति संगीत से एक अलग ही तरह का सकारात्मक वातावरण बन जाता था। मेरे लिये सबसे बड़ा आकर्षण था ढोल की थाप पर झूमना और ‘गोविंदा आला रे आला’ गाना। इसके बाद मैं माँ के द्वारा बनाई गई बनी पूरन पोली और पारंपरिक घरेलू पकवानों का मजा लेती थी।“ गीतांजली मिश्रा यानी ‘हप्पू की उलटन पलटन’ की राजेश, ने बताया, ‘‘जन्माष्टमी का त्यौहार बड़े पैमाने पर मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश में उसकी भव्यता अद्भुत होती है। बीते वक्त में मैंने निजी तौर पर इस त्यौहार में हिस्सा लिया है। उत्सव मनाने के लिये अनगिनत लोग मथुरा के श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में इकट्ठे होते हैं। नये-नये कलाकारों के द्वारा कृष्ण की रासलीला की प्रस्तुतियों से शहर जीवंत हो उठता है। कुछ व्यवस्थाएं तो इतनी आकर्षक होती हैं कि भक्त भगवान कृष्ण की भक्ति में पूरी तरह से मग्न हो जाते हैं। मेरे शहर वाराणसी में भी बेहतरीन उत्सव होता था। मेरी दादी माँ विशेष प्रसाद बनाती थीं, जैसे कि मलाई पेड़ा, चरणामृत और धनिया पंजेरी, जिनका भोग भगवान कृष्ण को लगता था। फिर हम घर का बना यह प्रसाद बाँटने और भजन गाने के लिये मंदिरों में जाते थे। मैंने बचपन में अपनी माँ से राधा के कपड़ों की माँग भी की थी, जिन्हें पहनकर मैं बड़ी खुश हुई थी। भगवान कृष्ण हम सभी पर प्रेम और मैत्री बरसाते रहें। आप सभी के लिये खुशियों से भरी जन्माष्टमी की कामना करती हूँ।’’
‘भाबीजी घर पर हैं’ में अंगूरी भाबी बनीं शुभांगी अत्रे ने बताया, ‘‘मुझे याद है कि इस वक्त मध्य प्रदेश में सारे मंदिर कितने शानदार तरीके से सजाये जाते थे और मटकी-तोड़ का आयोजन देखना बड़ा ही अच्छा लगता था। मेरे पिता मुझे मशहूर लक्ष्मीनारायण मंदिर लेकर जाते थे, जिसे बिड़ला मंदिर या कृष्ण परनामी मंदिर भी कहा जाता है और वहाँ भगवान के आशीर्वाद लेने के लिये बड़े पैमाने पर उत्सव होते थे। घर में हम फर्श पर बच्चे के पदचिन्ह बनाते थे, जो बाल कृष्ण के चरणों के प्रतीक होते थे। आरती के लिये हम आधी रात तक जागते थे और घर के बने माखन मिश्री, लौकी की बर्फी, मखाना खीर, आदि जैसे पकवानों का मजा लेते थे, जिन्हें मेरी माँ और दादी बड़े ही प्यार से बनाती थीं। यह प्रसाद भगवान कृष्ण को चढ़ाया जाता था। त्यौहार की पूरी तैयारी विशुद्ध रूप से प्रसन्नता का वातावरण बनाती थी और इलाके को सकारात्मकता से भर देती थी। मैं एक बार फिर यह सारे अनुभव लेने की चाहत रखती हूँ। इस जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण हम सभी के जीवन को आनंद और शांति से भरें।’’ आयुध भानुशाली उर्फ ‘दूसरी माँ’ के कृष्णा ने बताया, ‘‘मैं गुजरात से हूँ, जहाँ जन्माष्टमी बड़े ही उत्साह से मनाई जाती है और कई कारणों से इस त्यौहार की मेरे दिल में एक खास जगह है। इस दिन घर पर मेरी माँ और अन्य महिलायें उपवास रखती हैं, जबकि बच्चे कान्हा जी के आगमन की उम्मीद में हार-फूलों से पालना सजाते हैं। उत्सव की शुरूआत कृष्ण की मूर्ति को दूध और पानी से नहलाकर होती है। मूर्ति को नये कपड़े और गहने पहनाये जाते हैं, जिसके बाद आधी रात की आरती और मंगल आरती होती है। भगवान के लिये हमारे प्रसाद में मखाना पाग, खीर, चरणामृत और सूखे मेवों से भरे लड्डू होते हैं। हम नजदीक के कृष्ण मंदिरों में जाकर त्यौहार मनाते हैं। भगवद गीता में भगवान कृष्ण की शिक्षाओं पर आधारित नाटकों समेत सजावट और पार्टियाँ देखते हैं। गरबा में नाचने से उत्साह मिलता है और मशहूर द्वारकाधीश मंदिर को सबसे शानदार ढंग से सजाया जाता है। मैं कृष्ण बन जाता हूँ, जबकि मेरी बहनें गोपियाँ बन जाती हैं। मैं इस साल अपने परिवार के साथ त्यौहार मनाने के लिये बेहद उत्सुक हूँ।’’
आरजे मोहित ऊर्फ ‘दूसरी मां‘ के मनोज का कहना है, ‘‘जन्माष्टमी के जश्न के दौरान जयपुर एकदम जीवंत हो उठता है। मंदिरों को बेहद खूबसूरती से सजाया जाता है और अनूठे रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है। लोग उपवास रखते हैं, पूजा-प्रार्थनायें करते हैं और दिल को छू लेने वाले धार्मिक गायन एवं नृत्य में भाग लेते हैं। इस शहर का माहौल देखते ही बनता है और पूरा माहौल विभिन्न सांस्कृतिक प्रदर्शनों एवं कार्यक्रमों से दमक उठता है। गोविंद देव जी मंदिर में विशेष कृष्ण जन्मोत्सव का आयोजन किया जाता है और मैं हमेशा ही वहाँ जाने का मौका ढूँढ़ता रहता हूँ और खुद को त्योहारों के इस उल्लास में सराबोर कर लेता हूँ।‘‘ चारूल मलिक ऊर्फ ‘हप्पू की उलटन पलटन‘ की रूसा ने कहा, ‘‘चंडीगढ़ में जन्माष्टमी का उत्सव बेहद उल्लास के साथ मनाया जाता है। मंदिरों को सजाया जाता है, प्रार्थनायें होती हैं और धार्मिक गीतों एवं भजनों से पूरा वातावरण गूँज उठता है। रास लीला जैसे पारंपरिक नृत्य प्रतिभागियों का ध्यान आकर्षित करते हैं। पूरे शहर में धार्मिक माहौल बन जाता है और लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है। भगवान कृष्ण की मूर्तियों को नहलाया एवं सजाया जाता है और उन्हें स्वादिष्ट मिष्टान अर्पित किये जाते हैं। यह पूजा-पाठ और उल्लास, दोनों का ही समय होता है। हम अपने परिवार वालों के साथ मंदिर जाते हैं, भगवान के आर्शीवाद लेते हैं और इन मंदिरों की विशेष साज-सज्जा को निहारते हैं। चंडीगढ़ में एक मेले का आयोजन भी किया जाता है और मैं अपने भाई-बहनों के साथ वहाँ जाने के लिए बेहद उत्साहित रहती थी। यहाँ पर हम तरह-तरह के पकवानों का लुत्फ उठाते थे और खिलौने खरीद कर लाते थे। यदि मुझे अपने होमटाऊन जाने का मौका मिलता है, तो मैं निश्चित रूप से उन पलों को दोबारा जीना चाहूंगी।‘‘ सानंद वर्मा ऊर्फ ‘भाबीजी घर पर हैं‘ के अनोखे लाल सक्सेना ने बताया, ‘‘मेरा परिवार भगवान कृष्ण को बहुत मानता है। मेरी माँ ने कान्हा जी को अपने परिवार के एक सदस्य के रूप में अपनाया है और उनका ध्यान उसी तरह से रखा जाता है, जैसे किसी रिश्तेदार का। हालाँकि, मैं खुद को एक समर्पित भक्त तो नहीं बता सकता, लेकिन मैं इस त्योहार को मनाता हूँ और उसमें भाग लेता हूँ, क्योंकि मेरा परिवार भगवान कृष्ण को बहुत मानता है। मेरे होमटाऊन पटना में इस त्योहार को बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहाँ पर भगवान कृष्ण को 56 भोग लगाये जाते हैं और उन्हें पीले वस्त्र पहनाये जाते हैं। उनके लिये एक झूला तैयार किया जाता है और उसे फूलों से सजाया जाता है। कृष्ण जन्मोत्सव के पूरे दिन मधुर भजन बजाये जाते हैं। मुझे याद है कि बचपन में, इस उत्सव पर मैं काफी खुश रहता था। जन्माष्टमी के लिये आधी रात तक जागने का एक खास रोमांच होता था और पूजा के बाद, हम कृष्ण जी की तरह ही स्वादिष्ट मिठाईयों और माखन का स्वाद चखते थे।‘‘